1942 A Love Story
रिम झिम रिम झिम रुम झुम रुम झुम
भीगी भीगी रुत में तुम हम हम तुम
चलते हैं चलते हैं
बजता है जलतरंग पर के छत पे जब
मोतियों जैसा जल बरसाए
बूँदों की ये झड़ी लाई है वो घड़ी
जिसके लिये हम तरसे, हो हो हो रिम झिम रिम झिम
बादल की चादरें ओढ़े हैं वादियां
सारी दिशायें सोई हैं
सपनों के गाओं में भीगी सी छाँव में
दो आत्माएं खोई हैं
आई हैं देखने झीलों के आइने
बालों को खोले घटाएं
राहें धुआँ धुआँ जाएंगे हम कहाँ
आओ यहीं रह जाएं
हो ओ ... एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा, जैसे
खिलता गुलाब, जैसे
शायर का ख्वाब, जैसे
उजली किरन, जैसे
बन में हिरन, जैसे
चाँदनी रात, जैसे
नरमी बात, जैसे
मन्दिर में हो एक जलता दिया, हो!
ओ... एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा!
हो, एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा, जैसे
सुबह का रूप, जैसे
सरदी की धूप, जैसे
वीणा की तान, जैसे
रंगों की जान, जैसे
बलखायें बेल, जैसे
लहरों का खेल, जैसे
खुशबू लिये आये ठंडी हवा, हो!
ओ... एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा!
हो, एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा, जैसे
नाचता मोर, जैसे
रेशम की डोर, जैसे
परियों का राग, जैसे
सन्दल की आग, जैसे
सोलह श्रृंगार, जैसे
रस की फुहार, जैसे
आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता नशा, हो!
ओ... एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा!
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा!
कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो
क्या कहना है, क्या सुनना है
मुझको पता है, तुमको पता है
समय का ये पल, थम सा गया है
और इस पल में कोई नहीं है
बस एक मैं हूँ बस एक तुम हो
शानू:
कितने गहरे हल्के, शाम के रंग हैं छलके
पर्वत से यूँ उतरे बादल जैसे आँचल ढलके
सुलगी सुलगी साँसें बहकी बहकी धड़कन
महके महके शाम के साये, पिघले पिघले तन मन
लता:
खोए सब पहचाने खोए सारे अपने
समय की छलनी से गिर गिरके, खोए सारे सपने
हमने जब देखे थे, सुन्दर कोमल सपने
फूल सितारे पर्वत बादल सब लगते थे अपने
दिल ने कहा चुपके से, ये क्या हुआ चुपके से
आ आ
(क्यों नये लग रहें है ये धरती गगन
मैंने पूछा तो बोली ये पगली पवन
प्यार हुआ चुपके से, ये क्या हुआ चुपके से ) - २
तितलियों से सुना आ, तितलियों से सुना
मैंने किस्सा बाग का, बाग में थी एक कली
शर्मीली अनछुई, एक दिन मनचला, हो, भँवरा आ गया
खिल उठी वो कली पाया रूप नया
पूछती थी कली के मुझे क्या हुआ
फूल हँस चुपके से, प्यार हुआ चुपके से
मैंने बादल से कभी, ओ मैंने बादल से कभी
ये कहानी थी सुनी, पर्वतों की एक नदी, मिलने सागर से चली
झूमती घूमती, हो, नाचती डोलती
खो गयी अपने सागर में जाके नदी
देखने प्यार की ऐसी जादूगरी
चाँद खिला चुपके से, प्यार हुआ चुपके से
क्यों नये लग रहें है ये धरती गगन
मैंने पूछा तो बोली ये पगली पवन
प्यार हुआ चुपके से, ये क्या हुआ चुपके से
क्यों नये लग रहें है ये धरती गगन
मैंने पूछा तो बोली ये पगली पवन
दुरुना दुरुना दुरुना दुरुना दुरुना दुरुना ...